मकर संक्रांति 2025: एक विस्तृत मार्गदर्शिका | Makar Sankranti 2025

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मकर संक्रांति हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है जो भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में, खासकर उत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। मकर संक्रांति 2025 की तिथि 14 जनवरी 2025 है और इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे मकर संक्रांति कहा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि कृषि, समाज और संस्कृति से भी गहरे जुड़ा हुआ है। इस लेख में हम मकर संक्रांति के महत्व, इतिहास, पूजा विधि, त्योहार से जुड़े रीति-रिवाजों, और इसके साथ जुड़े विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं को विस्तार से जानेंगे।

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति का धार्मिक दृष्टिकोण बहुत गहरा और महत्वपूर्ण है। यह दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जो इस बात का संकेत है कि अब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ रहा है। दक्षिणायन का समय, जो कर्क राशि से मकर राशि के बीच होता है, अंधकार और नकारात्मकता का समय माना जाता है। जबकि उत्तरायण का समय उज्जवल और सकारात्मकता से जुड़ा हुआ होता है।

सूर्य के उत्तरायण होने का अर्थ है कि प्रकृति में बदलाव आना शुरू होता है, और यह समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इसी कारण मकर संक्रांति को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय के समय विशेष पूजा और स्नान का महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन किए गए पवित्र कार्यों का कई गुना फल मिलता है।

मकर संक्रांति का ऐतिहासिक संदर्भ

मकर संक्रांति का इतिहास बहुत पुराना है, और यह प्राचीन भारतीय संस्कृति और खगोलशास्त्र से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। इसे एक खगोलीय घटना के रूप में देखा जाता है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह घटना भारतीय कैलेंडर के हिसाब से हर साल तय समय पर होती है, और प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्रियों ने इसे बड़े ही ध्यान से गणना की थी।

संक्रांति शब्द का अर्थ होता है ‘एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश’। मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, और इसके बाद से सूर्य की किरणें पृथ्वी पर अधिक प्रभावी होती हैं। यह समय खेती-बाड़ी के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि यह किसानों के लिए अच्छी फसल की उम्मीद का संकेत होता है।

मकर संक्रांति के प्रमुख रीति-रिवाज

मकर संक्रांति को मनाने के तरीके देश और क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं, लेकिन सभी में एक सामान्यता है – यह पर्व सूर्य पूजा और प्रकृति के प्रति आभार का पर्व होता है। चलिए जानते हैं कुछ प्रमुख रीति-रिवाजों के बारे में:

  1. तिल और गुड़ का सेवन: मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ का विशेष रूप से सेवन किया जाता है। तिल के सेवन से शरीर को ऊर्जा मिलती है और यह शीतकाल में शरीर को गर्मी प्रदान करता है। गुड़ से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इस दिन तिल से बनी मिठाइयों और लड्डू का आदान-प्रदान होता है।
  2. गंगा स्नान: मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और आत्मा शुद्ध होती है। खासकर हरिद्वार और वाराणसी जैसे स्थानों पर बड़ी संख्या में लोग गंगा स्नान करने जाते हैं।
  3. दान और पुण्य कार्य: मकर संक्रांति पर दान का अत्यधिक महत्व है। विशेष रूप से इस दिन गरीबों, ब्राह्मणों और साधुओं को तिल, गुड़, वस्त्र, और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान दी जाती हैं। यह कार्य पुण्य को बढ़ाता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
  4. सूर्य पूजा: मकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा की जाती है। सूर्योदय से पहले उबटन, स्नान और पूजा का आयोजन किया जाता है। सूर्य देव को अर्घ्य देने से समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
  5. पतंग उड़ाना: मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाना एक लोकप्रिय परंपरा है, खासकर उत्तर भारत में। यह परंपरा खासतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, और राजस्थान में देखने को मिलती है। पतंगबाजी को ‘मकर संक्रांति की खेल’ के रूप में मनाया जाता है और यह बहुत ही उल्लासपूर्ण और सामूहिक उत्सव होता है।
  6. खिचड़ी बनाना: मकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से खिचड़ी बनाई जाती है, जिसे ‘खिचड़ी उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। यह खासतौर पर उत्तर भारत और बिहार में लोकप्रिय है। खिचड़ी का सेवन शाकाहारी और सेहतमंद होता है, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
  7. पौराणिक कथाएँ: मकर संक्रांति के दिन कई धार्मिक और पौराणिक कथाएँ सुनाई जाती हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कथा है ‘भीष्म पितामह की मरण’ की कथा, जिसमें भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन अपनी मृत्यु का संकल्प लिया था। इसके अलावा कई अन्य कथाएँ भी हैं जो इस दिन को विशेष रूप से महत्व देती हैं।

मकर संक्रांति का सांस्कृतिक पहलू

मकर संक्रांति को सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं माना जाता, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विभिन्न क्षेत्रों में इसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, और हर जगह इसके साथ जुड़ी हुई परंपराएं और उत्सव इसे एक नया रंग देती हैं।

  • उत्तर भारत: उत्तर भारत में मकर संक्रांति मुख्य रूप से तिल और गुड़ के लड्डू बनाने की परंपरा है। यहां पर पतंगबाजी का उत्सव भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
  • गुजरात और महाराष्ट्र: गुजरात में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। यहां पर ‘उत्सव’ के रूप में पतंगबाजी की जाती है। इसे ‘उत्तरायण’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • पंजाब: पंजाब में इस दिन को ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाया जाता है, जो मुख्य रूप से किसानों के लिए फसल के सीजन की शुरुआत का प्रतीक होता है।
  • दक्षिण भारत: दक्षिण भारत में मकर संक्रांति को ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है, जो एक कृषि आधारित त्योहार है। यहां विशेष रूप से नए अनाज की पूजा की जाती है।

मकर संक्रांति 2025 की विशेषताएँ

मकर संक्रांति 2025 का पर्व 14 जनवरी को है, जो मंगलवार के दिन पड़ता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे और दिन लंबा होगा। इस दिन सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश से समृद्धि और खुशी की शुरुआत मानी जाती है। यह समय किसानों के लिए भी खुशियों का है, क्योंकि यह कृषि कार्यों की शुरुआत का संकेत है।

मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व न केवल सूर्य की पूजा और पुण्य कार्यों का प्रतीक है, बल्कि यह समाज, संस्कृति और कृषि से भी गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। इस दिन के आयोजन में उल्लास, खुशी और परिवार का साथ होता है। मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जो प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे कर्मों की प्रेरणा देता है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाने की कोशिश करता है।

मकर संक्रांति का त्यौहार हम सभी को यह सिखाता है कि जीवन में समय के साथ बदलाव लाना जरूरी है, और सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश की तरह हमें भी अपनी दिशा और सोच को सकारात्मक रूप में बदलने की आवश्यकता है।

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